Tuesday 13 December 2016

शिक्षा किस प्रकार भारत में पर्यटन में सहायता कर सकती है?

2015 में भारत में लगभग 80 लाख विदेशी पर्यटक आए। यह फ्रांस व संयुक्त राज्य में से प्रत्येक को प्राप्त होने वाले पर्यटकों का लगभग 10 प्रतिशत - 8 करोड़ है। भारत को विदेशी मुद्रा की अत्यंत आवश्यकता है तथा पर्यटन एक ऐसा उद्योग है जो बहुत सी विदेशी मुद्रा दे सकता है। उदाहरण के लिए, भारत को पर्यटकों से राजस्व के रूप में 21 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए वहीं संयुक्त राज्य को 210 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए। यह भारत जैसे देश के लिए पर्याप्त आय है।

यहां तक कि थाईलैंड जैसे देश को भी 3 करोड़ पर्यटक प्राप्त हुए जिनमें से 10 लाख भारत ने भेजे थे। तो विदेशी पर्यटकों को भारत में लाने के लिए शिक्षा का क्षेत्र क्या कर सकता है?

पर्यटन के क्षेत्र के लिए शिक्षा विभाग द्वारा दो महत्त्वपूर्ण योगदान दिए गए हैं। पहला अंग्रेजी भाषी जनशक्ति की आपूर्ति है। पर्यटन उद्योग लोगों का शारीरिक रूप से किसी देश में आना तथा गाईड, होटल वालों, वेटर, दुकानदार तथा टैक्सी ड्राइवरों से बात करने पर काफी हद तक निर्भर करता है। यदि हम हमारे लोगों को अंग्रेज़ी में बेहतर होने के लिए प्रशिक्षित करें तो हम अतिथियों को बेहतर सेवाएं दे सकते हैं व उन्हें संतुष्ट कर सकते हैं। पर्यटकों को भारत में यात्रा करते समय सहज महसूस करने की आवश्यकता है। संकेतक व निर्देश अंग्रेज़ी में होना चाहिए। भारत अब भी क्षेत्रीय भाषाओं पर बहुत निर्भर करता है व भारत में ऐसे पर्यटन स्थल हैं जहां आप एक भी अंग्रेजी संकेतक नहीं पाएंगे व भारतीय भी उन्हें नहीं समझ सकते हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देना है। पर्यटन उद्योग को एक मज़बूत अवसंरचना की आवश्यकता है। सड़कें, होटल, अच्छी सुविधाएं, शौचालय, गाइड, परिवहन एवं भ्रमण स्थान। ये वस्तुएं पहले घरेलू पर्यटन के लिए विकसित की जाती है तथा उसके बाद विदेशी पर्यटकों के लिए। भारत में 125 करोड़ लोग हैं व लगभग 100 करोड़ घरेलू पर्यटन यात्राएं होती हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यदि भारत विदेशी यात्रियों को आकर्षित करना चाहता है तो पहले उसे स्थानीय पर्यटकों को खुश करना चाहिए।

तो इस चित्र में शिक्षा कहां सही बैठती है? दो शब्दों में: बड़ा सप्ताहांत। भारत धार्मिक दिनों के लिए छुट्टियां प्रदान करता है तथा अधिकांश राज्य बोर्ड विद्यालय वर्ष में 240 दिन कार्य करते हैं। इसका अर्थ है कि शनिवार कार्य-दिवस होता है तथा कोई गारंटी नहीं होती कि वर्ष में लंबे साप्ताहांत की एक विशिष्ट संख्या होगी ही। घरेलू पर्यटन तब तक पनप नहीं सकता है जब तक 3 या अधिक दिन के लंबे सप्ताहांत नहीं होंगे। यह एक समुद्र तट, पहाड़ी क्षेत्र, मनोरंजन पार्क पर एक छोटी यात्रा के लिए आदर्श समय है। एक शनिवार व रविवार के साथ संयुक्त सार्वजनिक छुट्टी एक मजेदार यात्रा के लिए आदर्श समय देगी। यह परिवार के जुड़ने का एक अच्छा अनुभव प्रदान करता है व बच्चों को नियमित जीवन से एक अंतराल मिलता है। गर्मियों व दिवाली की एक लंबी छुट्टी इतनी उपयोगी नहीं है जितनी की हर दो महीनें में तीन दिनों की छुट्टी।

यहां कुछ कदम हैं जो एक भी रूपया खर्च किए बगैर घरेलू पर्यटन को दो गुना बढ़ा सकते हैं:

1.    मानव संसाधन मंत्रालय को विभिन्न राज्य शिक्षा विभागों के साथ संगठित होना चाहिए तथा सभी विद्यालयों में 200 कार्य दिवस का आर्दश स्थापित करना चाहिए।

2.    आगामी रूप से एक कैलेंडर बनाए जहां कुछ छुट्टियां साप्ताहांत के साथ जोड़ी जा सके व स्थानीय छुट्टियों के आधार पर वर्ष में कम से कम 3 बड़े साप्ताहांत प्रदान करे। उन्हें बगैर किसी कारण के कुछ छुट्टियां शुरू करने की आवश्यकता हो सकती है।

3.    समय का प्रबंधन करें ताकि पूरे भारत को यात्रा करने के लिए समान साप्ताहांत ना प्राप्त हो। इस प्रकार पर्यटन अवसंरचना का बेहतर उपयोग होगा।

मुझे यकीन है कि लोग सरकार की सराहना करेंगे क्योंकि यह बच्चों के अध्ययन में कोई कमी ना करते हुए, तनाव कम करेगा व पारिवारिक समय को बेहतर करेगा। 

Saturday 10 December 2016

उच्च शुल्क वसूलने वाले विद्यालयों की समस्या को कैसे हल किया जा सकता है?

हम बहुत बार अभिभावकों को एक विद्यालय में हो हल्ला करते देखते हैं और कारण आमतौर पर शुल्क बढ़ाने के विरोध में प्रदर्शन होता है। अभिभावक वहां घंटों तक बैठे रहते हैं तथा फीस कम करने की मांग करते हैं। प्रबंधन अभिभावकों को शांत करने का प्रयास करता है व कई बार सरकार भी शामिल हो जाती है। यह बहुत ही बुरी स्थिति है और लगभग सभी विद्यालय जीवन में एक बार इसका सामना करते ही हैं। मौजूदा विद्यालय वाले अभिभावक फीस वद्धि का विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं- परंतु नए विद्यालयों का क्या जिनकी फीस अधिक है? उन विद्यालयों के विरूद्ध कोई प्रदर्शन नहीं होता है तथा विकल्पों की कमी के कारण अभिभावकों को ऐसे महंगे विद्यालयों को ही चुनना पड़ता है। इस समस्या को स्थियी रूप से हल करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

हम भारत में दूरसंचार क्रांति से कुछ सीख सकते हैं। लगभग 20 वर्ष पहले, भारत में दूरसंचार परिदृश्य निराशाजनक था - दूरसंचार का प्रसार केवल 8 प्रतिशत था तथा संचार की लागत बहुत उच्च थी। सरकार टेलिफोन लाइन प्रदान किया करती थी एवं हमेशा एक वेटिंग लाइन रहती थी जिसमें बहुत सी गड़बड़ियां रहती थी और जो आमतौर पर ‘‘डेड” रहती थी। हालांकि वस्तुएं अब बदल गई हैं तथा प्रसार लगभग 86 प्रतिशत तक है और हमारी दरें विश्व में सबसे कम हैं। वर्तमान में, शिक्षा क्षेत्र ठीक ऐसी ही स्थिति में है। अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालयों की संख्या बहुत कम है एवं शुल्क बहुत उच्च है। प्रवेश प्राप्त करने के लिए एक आम आदमी को कतार में खड़ा रहना होता है अथवा मोटे प्रवेश शुल्क का भुगतान करना होता है।

वे निर्णय जिन्होंने भारत में दूरसंचार उद्योग को बदल दिया, क्या उन्हें शिक्षा के लिए भी लागू किया जा सकता है? क्या एक 16 रूपए/मिनट का कॉल आजीवन मुफ्त वॉइस कॉल बन सकता है? जिन्होंने एक प्रभाव बनाया वे निर्णय थे-दूरसंचार विभाग का टूटकर वाणिज्यिक परिचालन एवं विनियमों में परिवर्तित होना। इसलिए सेवाएं देने के लिए बीएसएनएल व एमटीएनएल का गठन हुआ तथा नियम बनाने के लिए टीआरएआई (ट्राई) का। इसके अलावा, इस क्षेत्र में बहुत सी प्रतिस्पर्धा को अनुमति दी गई और इसलिए बाज़ार का विस्तरण हुआ तथा कॉल की लागत कम हो गई। हमने सेवा मानकों में सुधार देखा तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का कार्यान्वन लागू किया गया था। जनसंख्या, आर्थिक सुधार तथा दुरसंचार उद्योग के विनियमन में ढ़ील के संयोजन के साथ, भारत विश्व का सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ बाज़ार बन गया।

इसी तरह हम निम्नलिखित निर्णय के साथ शिक्षा क्षेत्र को भी बदल सकते हैं:
1.    प्रत्येक राज्य के शिक्षा विभाग की भूमिका को सेवा प्रदाता से ट्राई जैसे नियामक में विभाजित करना।

2.    निजी कंपनियों, व्यक्तियों तथा भागीदारों को भी विद्यालय चलाने की अनुमति देना। अभी केवल ट्रस्टों को अनुमति है।

3.    सभी नगर निगम व सरकारी विद्यालयों को स्पष्ट उद्देश्यों तथा मापने योग्य परिणामों वाली एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में परिवर्तित करना।

4.    इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी के निवेश को अनुमति देना तथा निजी एवं विदेशी प्रमुखों के लिए एक उच्च शिक्षा विभाग खोलना।

5.    सभी विद्यालयों के लिए गुणवत्ता माप में पारदिर्शता होना ताकि अभिभावक एक सूचित निर्णय ले सकें।

बढ़ती प्रतिस्पर्धा, भारी निवेश एवं पारदर्शिता ने पिछले कुछ वर्षों में भारत को दूर संचार बाज़ार में एक प्रमुख बना दिया है। मुझे यकीन है कि यदि यही सिद्धांत प्राथमिक व महाविद्यालयीन शिक्षा पर लागू कर दिए जाएं, तो समान परिणाम प्राप्त होंगे। हम एक अरब लोग हैं जिनका सपना अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना है। उनके इस सपने को पूरा करने की राह में सरकार क्यों बीच में आ रही है? 

विद्यालय के विरोध प्रदर्शन केवल वित्तीय कारणों से क्यों होते हैं?

हर वर्ष ये खबरें आती हैं कि अभिभावकों ने विरोध प्रदर्शन किया एवं एक विद्यालय का नाम समाचारपत्र में आता है। आमतौर पर बात यह होती है कि विद्यालय के शुल्क में वृद्धि हुई है तथा अभिभावकों ने एक समूह बनाया है व इसका विरोध करने का निर्णय लिया है। वर्ष दर वर्ष मैंने देखा है कि यही खबर दुहराती रहती है।

अभिभावकों को परिणामों व उनके बच्चे के भविष्य निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए बजाए इसके कि वे कितने शुल्क का भुगतान कर रहे हैं। नमक व चीनी की तरह विद्यालयों को भार के पैमाने पर नहीं मापा जा सकता। कुछ बातें जिनपर अभिभावकों को ध्यान केंद्रित करना चाहिएः


1.    क्या उस कक्षा का पाठ्यक्रम पूरा हो गया है? यदि आप सर्जरी के लिए किसी चिकित्सक के पास जा रहे हैं व चिकित्सक अपने वादे के अनुसार ऑपरेशन तो कर देता है परंतु टांके नहीं लगाता, तो क्या रोगी बच सकेगा? पाठ्यक्रम पूरा ना करना इसी प्रकार की एक समस्या है। 90 प्रतिशत फीस का भुगतान मांगना तथा पाठ्क्रम का 90 प्रतिशत ही पढ़ाना, दीर्धकाल तक बच्चों की सहायता नहीं कर पाएगा।

2.    क्या शिक्षक बच्चों की कॉपी जांच रहा है? शिक्षक को बच्चों का कक्षा कार्य तथा गृह कार्य जांचना ही चाहिए। हालांकि कई शिक्षक नहीं करते हैं। माता पिता यह घर पर आसानी से देख सकते हैं। कभी कभी गलत उत्तरों को भी सही का निशान लगा दिया जाता है और इसलिए बच्चे को पता नहीं चलता कि उसने जो समझा है वह गलत है।

3.    क्या प्रश्न पत्र अत्यधिक आसान बनाया गया है? एक शिक्षक को पता होता है कि बच्चों को एक विशेष विषय समझ नहीं आया है। इसलिए अतिरिक्त समय लेकर उस विषय को समझाने की जगह वे परीक्षा में उस विषय से संबंधित प्रश्न ही नहीं पूछते या फिर उसमें से आसान प्रश्न पूछते हैं।

4.    क्या शिक्षक परीक्षा में अंक देने में उदारता दिखा रहे हैं? जब उनके बच्चों को अच्छे अंक प्राप्त होते हैं तो अभिभावक प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए कभी कभी शिक्षक बच्चे को उसकी योग्यता से अधिक अंक प्रदान कर देते हैं। कभी कभी यह प्रोत्साहन के लिए होता है जबकि अन्य समय में ऐसा नहीं होता।

5.    सुनिश्चित करना कि बच्चा होमवर्क करता है। फीस के मामले में अभिभावकों के विरोध प्रदर्शन को समाचार पत्र में स्थान प्राप्त होता है परंतु अभिभावक उनके बच्चों का गृहकार्य नहीं देखते यह सुर्खियां बटोरने लायक बात नहीं है। अधिकांश अभिभावक उनके बच्चों की पढ़ाई के बारे में तभी सोचते हैं जब परीक्षा समीप आ रही हो। अन्यथा बच्चों द्वारा कक्षा कार्य/गृह कार्य समय पर किए जाने के बारे में कोई परवाह नहीं करते हैं।

6.    ऐसे विषय जिनकी कोई परीक्षा नहीं होती, क्या उनमें बच्चा कुछ सीखता है- विषय जैसे कि शारीरिक शिक्षा, कला व शिल्प, संगीत जिनके लिए कोई परीक्षा व अंक नहीं होते हैं, उनमें बच्चा क्या सीख रहा है। क्या यह बच्चे के लिए केवल समय की बर्बादी है।

7.    यदि एक सप्ताह में कई बार बच्चे को फ्री पीरियड मिल रहा हो-तो विद्यालय उसका काम अच्छे से नहीं कर रहा है। क्या अभिभावकों को इस बात की चिंता है कि विद्यालय बच्चों के लिए शिक्षकों का प्रबंध करने में असमर्थ है?

8.    क्या बच्चों के मित्र अच्छे हैं? यदि बच्चा बुरी संगत में पड़ जाता है तो अध्ययन प्रभावित होता है। एक बच्चे की शिक्षा के लिए मित्र भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितने की शिक्षक। बच्चों को सतर्क रहना चाहिए कि बच्चा किस तरह के मित्रों के साथ समय व्यतीत कर रहा है।


9.    क्या विद्यालय के शौचालय कार्य कर रहे हैं? विद्यालय की सुविधाएं भी उतनी ही अच्छी होनी चाहिए जितनी के उनके कर्मचारी। अभिभावकों को ऐसी छोटी बातों के बारे में भी सावधान रहना चाहिए क्योंकि बच्चों को विद्यालय के शौचालय से विभिन्न प्रकार के भय हो सकते हैं। कई बच्चे शौचालय जाने से बचते हैं व फलस्वरूप विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं।

अभिभावकों को उनकी ऊर्जा अपने बच्चों के विकास पर लगानी चाहिए बजाए इसके कि एक विद्यालय कितना शुल्क वसूल रहा है। इस प्रकार बच्चे तथा संपूर्ण शैक्षिक क्षेत्र का भविष्य उज्जवल होगा।


विद्यालय का मूल्यांकन करने का मानदंड

पिछले पांच वर्षों में भारत के सभी शहरों में बहुत सारे निजी विद्यालय खुले हैं। वे घुड़सवारी, स्विमिंग पूल से लेकर सभी कक्षाओं में एसी जैसी सुविधाएं प्रदान करते हैं। यहां तक की शिक्षा के लिए स्मार्ट कक्षाओं एवं टेबलेट पीसी जैसी कुछ सुविधाएं जो भारत के लिए बिल्कुल असाधारण थीं, वे पिछले दशक में आम हो गई हैं। इन दिनों अधिकांश माता पिता का केवल एक ही बच्चा होता है और जब उन्हें एक विद्यालय में प्रवेश का निर्णय लेना होता ह तब वे काफी छोटे होते हैं। ऐसे अभिभावक आमतौर पर सतही बातों से प्रभावित होकर गलत विद्यालय में प्रवेश ले बैठते हैं। अभीभावकों को यह बात बाद में महसूस होती है और फिर वे उसी शहर के किसी अन्य विद्यालय में स्थानांतरण कर लेते हैं, कभी कभी शैक्षणिक वर्ष के दौरान ही। इससे विद्यार्थी अपने मित्र खो देते हैं तथा शिक्षा की प्रणाली बदल जाती है जिससे, शैक्षणिक पाठ्यक्रम में प्रगति के साथ इससे तालमेल बैठाना विद्यार्थियों के लिए बहुत कठिन हो जाता है।

यहां कुछ प्रश्न हैं जो आपको प्रवेश लेने से पूर्व पूछना चाहिएः

1.    क्या बोर्ड की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त करने वालों में से इस विद्यालय का कोई विद्यार्थी है? यदि विद्यालय में राज्य बोर्ड के अलावा कोई अन्य बोर्ड है तो यह प्रश्न भी पूछा जाना चाहिए कि शहर में से कितने विद्यार्थियों ने उस परीक्षा में भाग लिया- ताकि आप जान सकें कि क्या उन्होनें वास्तव में किसी प्रतिस्पर्धा का सामना किया।

2.    क्या बोर्ड की परीक्षा में कुछ विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हुए है? इस तरह के प्रश्न की जांच इंटरनेट एवं मीडिया पर उपलब्ध जानकारी के साथ की जानी चाहिए। ऐसे कुछ विद्यालय हैं जो 100 प्रतिशत परिणाम का दावा करते हैं परंतु वास्तव में ऐसा है नहीं।

3.    बोर्ड की परीक्षा में विद्यालय का औसत परिणाम क्या है? परिणाम 100 प्रतिशत हो सकते हैं तथा बोर्ड में कुछ अव्वल स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी भी हो सकते हैं- परंतु औसत परिणाम यह बता देगा कि आपका बच्चा उस विद्यालय में संभवतः कितने अंक प्राप्त करेगा। इसलिए यदि अ विद्यालय का पिछले पाँच वर्षों का औसत परिणाम 65 प्रतिशत है तथा ब विद्यालय का 66 प्रतिशत है, तो विद्यालय ब विद्यालय अ से कहीं बेहतर है क्योंकि यह बताता है कि बहुत से विद्यार्थियों ने बहुत अधिक अंक प्राप्त किए होंगे।

4.    परिणाम का मानक अपसरण क्या है? कई लोग बोर्ड के स्थानों तथा 100 प्रतिशत उत्तीर्ण अनुपात से प्रभावित हो जाते हैं परंतु दिलचस्प आंकडे़ यह होंगे कि कितने विद्यार्थी औसत से दूर हैं। यह बैच के परिणामों की स्थिरता पर एक अच्छी दृष्टि प्रदान करेगा। तो मान लीजिए कि 40 बच्चों की कक्षा में अव्वल रहने वाले 5 विद्यार्थी हैं तथा औसत परिणाम भी अच्छा है। हालांकि यदि मानक अपसरण बहुत अधिक है, -तो इसका अर्थ है कि बहुत से विद्यार्थी ऐसे हैं जो औसत परणाम से दूर हैं। इससे कक्षा के प्रदर्शन में विसंगति का पता चलता है तथा संकेत मिलता है कि विद्यार्थी विद्यालय में अध्ययन करने की बजाए ट्यूशन लेते हैं।,

5.    विद्यार्थी अवधारणः एक अच्छे विद्यालय की एक उच्च विद्यार्थी अवधारण दर होगी - अगर विद्यार्थियों के बहुमत में एक निरंतर परिर्वतन होगा तो एक संकेत होगा कि विद्यालय के प्रति एक प्रमुख अंसतोष है।

6.    कर्मचारी अवधारणः एक ही विद्यालय में शिक्षकों की निरंतरता शिक्षा की गुणवत्ता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक विद्यालय जिसके शिक्षक कम अनुभवी हैं, एक निश्चित समस्या है। हालांकि शिक्षकों का अक्सर बदलते रहना भी एक बड़ी समस्या है। यह एक बड़ी समस्या का एक निश्चित संकेत है।

7.    नियमित विज्ञापनः वे विद्यालय जिन्हें पुराना होने के बावजूद अक्सर विज्ञापन की आवश्यकता होती है, तो यह एक संकेत है कि विद्यालय में कुछ गुणवत्ता समस्याएं हैं। यदि विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता प्रचार नहीं कर रहे हैं तो आमतौर पर कुछ अंतर्निहित समस्या है।

आपके बच्चे के लिए सही विद्यालय का चयन करने में आपको सफलता प्राप्त हो- यह आपके बच्चे के भविष्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है।