Thursday 16 February 2017

विद्यालयों में शुल्क नियंत्रणः क्या यह शिक्षा क्षेत्र की सहायता करेगा?

गुजरात सरकार में विद्यालयों में शुल्क नियंत्रित करने का एक प्रस्ताव है। ऐसी संभावना है कि विधानसभा के आने वाले सत्र में एक बिल रखा जाएगा जो विद्यालय में शुल्क नियंत्रित करेगा। आइए हम जांच करते हैं कि क्या शुल्क पर नियंत्रण एक आर्थिक दृष्टि से विवेकी निर्णय है।

यह अनुमानित है कि बिल में एक राशी उल्लेखित होगी एवं विद्यालयों को केवल यह औचित्य सिद्ध करना होगा कि वे निर्धारित राशी से अधिक शुल्क क्यों वसूल रहे हैं। जहां कुछ लोग मानते हैं कि ऐसी कोई राशी निर्धारित नहीं की जाने वाली - प्रत्येक विद्यालय में एक समिति स्थापित की जाएगी एवं राशी प्रत्येक विद्यालय की उस समिति द्वारा निर्धारित की जाएगी। हालांकि हमारे पास अब तक उस नियंत्रण के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।

अर्थशास्त्र - जो विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है उसमें ‘‘बाज़ारकी अवधारणा होती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें बाज़ार द्वारा निर्धारित की जानी होती हैं एवं एक आर्दश प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमतें बिल्कुल सही होंगी ताकि विक्रेताओं को कोई हानि ना हों एवं ग्राहकों को उससे कहीं अधिक मूल्य प्राप्त हो जितना वे भुगतान करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कखग विद्यालय 1 लाख रूपये का शुल्क वसूल करता है जबकि विद्यालय को उसकी लागत 50,000 रूपये पड़ती है, अर्थशास्त्रियों को लगता है कि एक नया अबस विद्यालय ठीक कखग विद्यालय के पीछे आएगा और फिर या तो कखग विद्यालय को शुल्क कम करना होगा अथवा खाली बैठना होगा। यदि अभिभावकों को अबस विद्यालय पसंद नहीं है तो वे तब भी कखग विद्यालय में प्रवेश के लिए प्रयास करेंगे - और तब अबस विद्यालय को उसकी सेवाएं सुधारनी होगी अथवा खाली बैठना होगा।

कोई भी सरकारी नियंत्रण बाज़ार को उलझाएगा एवं ऐसी स्थिति उत्पन्न करेगा जहां अबस विद्यालय नहीं पाएगा एवं अभिभावकों को उनके बच्चों का प्रवेश कखग विद्यालय में ही करवाना होगा। कखग का शुल्क नियंत्रण के आधार पर कम हो सकता है अथवा नहीं भी, हालांकि निरंतर विकास की आवश्यकता अवश्य कम होगी।

अर्थशास्त्र में अन्य अवधारणा ‘‘प्रतिस्थापन”  है। मान लीजिए कि आप एक गर्म ग्रीष्मकालीन दोपहर में प्यासा एवं थका हुआ महसूस कर रहे हैं। आप विचार कर रहे हैं कि नींबू पानी पीना चाहिए अथवा छाछ, यह मानते हुए कि वे उपलब्ध हैं एवं एक ही कीमत के हैं, आप उसे खरीदने के लिए विक्रेता के पास जाते हैं। हांलाकि उस क्षेत्र में कुछ ही ऐसे स्थान हैं जहां उनका उत्पादन होता है तो आप थम्स अप अथवा पेप्सी चुनते हैं - जो उसी मूल्य के हैं, स्वच्छ हैं तथा ठंडे स्वरूप में प्रदान किए जाते हैं। यद्यपि सभी 4 पेय एक ही मूल्य के हैं, आप मूल्य के बजाए अन्य कारणों के आधार पर निर्णय लेते हैं कि क्या पीना है। तो जहां सरकार यह बहस कर रही है कि नींबूपानी अथवा विद्यालयों को क्या शुल्क वसूल करना चाहिए - ग्राहक आकलन कर रहा है कि उनके बच्चों को महाविद्यालय में प्रवेश प्राप्त करने के लिए कौन सी कक्षाएं लेनी चाहिए अथवा एक कहीं अधिक उच्च कीमत पर थम्स अप खरीदना चाहिए।

एक देश होने के नाते हमें यह समझने की आवश्यकता है कि पिछले समय में भी मूल्य नियंत्रण असफल हुआ है खासतौर पर सेवाओं में। किन्हीं भी दो सेवाओं की तुलना नहीं की जा सकती एवं फीस का निर्धारण करने में बहुत सी व्यक्तिपरकता है। यदि स्थापित विद्यालय को नए अभिभावक प्राप्त हों जो बगैर किसी दबाव के प्रवेश शुल्क एवं परीक्षा शुल्क देने को तैयार हों यह एक लिटमस परीक्षण है कि विद्यालय अच्छा कार्य कर रहा है। यदि विद्यालय खाली जा रहा है तो विद्यालय संस्थापक भुगतेंगे और यदि प्रवेश के लिए लंबी कतारें हैं - तो यह निश्चित है कि विद्यालय एक उत्कृष्ट कार्य कर रहा है।


Tuesday 31 January 2017

किशोरावस्था में आत्महत्या- भाग 1

कुछ आम कारण

यह अनुमानित है कि भारत विश्व में किशोरावस्था में आत्महत्या की राजधानी है। किशोरों की सबसे अधिक संख्या आत्महत्या करने का प्रयास यहां करती है एवं सबसे अधिक संख्या में सफल भी होती हैं। जहां काफी हद तक जनसांख्यिकी को दोष ठहराया जा सकता है एवं कहा जा सकता है कि भारत एक युवा देश है तथा हमारे पास विश्व में सर्वाधिक किशोरों की संख्या है तथा गरीबी के कारण, हमारे बच्चे इस परेशानी का सामना कर रहे हैं। हालांकि भविष्य इससे भी बुरा होने वाला है क्योंकि किशोरों की संख्या बढ़ने ही वाली है तथा आत्महत्या में और अधिक वृद्धि होगी। आइये हम समस्या का विश्लेषण करते हैं एवं यह जानने का प्रयास करते हैं कि हम उसे किस प्रकार कम कर सकते हैं। किशोर निम्नलिखित कारणों से आत्महत्या करते हैं:

  • अध्ययन संबंधित दबावः इसमें कारणों की एक पूरी प्रचुरता शामिल है जैसे कि जब विद्यार्थी परीक्षाओं में प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं होते हैं, या वे अपने पसंद के क्षेत्र में नहीं जा पाते हैं, अथवा वे चयनित विषय के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाते हैं जैसे इंजीनियरिंग या चिकित्सा या वे अध्ययन करते करते थक चुके होते हैं।
  • आत्महत्याओं का पारिवारिक इतिहासः अक्सर यह देखा गया है कि परिवार में आत्महत्या की प्रवृत्ति रहती है और यह अनुवांशिक है।
  • साथियों का दबावः मित्रों का प्रभाव, महाविद्यालयों एवं हॉस्टलों में सिनीयर्स द्वारा तंग करना या रैगिंग एक ऐसे स्तर तक पहुंच सकती है कि किशोर यह महसूस करने लगें कि उन्हें यह सब समाप्त करना है तथा वे उस यातना को पुनः नहीं झेल सकते। कुछ किशोरों में सहनशक्ति बहुत कम होती है तथा चिढ़ाने जैसी साधारण सी घटनाएं भी उन्हें आत्महत्या करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।
  • विद्यालयीन तथा महाविद्यालयीन जीवन में अंतरः अचानक एक ‘‘मुक्त” क्षेत्र में पहुंचने से, जहां उनकी निगरानी करने वाला या उन्हें अनुशासित करने वाला कोई नहीं होता, किशोर खोया हुआ तथा हताश महसूस करते हैं।
  • माता पिता द्वारा अधिक लाड़-प्यारः यह उन्हें व्यक्तिगत निर्णय लेने में अक्षम बनाता है तथा वे घर छोड़ने पर/विदेश जाने पर कमज़ोर पड़ जाते हैं क्योंकि वे स्वयं के दम पर स्थितियों का सामना करने में पूरी तरह असमर्थ होते हैं।
  • वित्तीय मुद्देः महाविद्यालय में वे उनके साथियों जैसा बनने तथा आमतौर पर ऐसी जीवनशैली स्थापित करने की आवश्यकता महसूस करते हैं जिसका खर्च वे वहन नहीं कर सकते हैं जो उन्हें आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करता है।
  • संबंध संबंधित समस्याएं: विफल प्रेम संबंधों, अभिभावकों के साथ समस्यों तथा मित्रता में समस्याओं के कारण कई किशोरों की मौत हो चुकी है। यह वह चरण है जहां अस्वीकृति का एक गहरा प्रभाव है।
  • नशीले पदार्थों (ड्रग्स) की लतः भारत के कुछ भागों में ड्रग्स की लत बहुत तेज़ गति से बढ़ रही है। जब किशोर तीव्र ड्रग्स के आदि हो जाते हैं, वे उसे छोड़ नहीं पाते तथा आमतौर पर उस आदत से छुटकारा पाने के लिए स्वयं का जीवन समाप्त कर देते हैं।
  • आत्महत्या से संबंधित घटनाओं की जानकारीः मीडिया अथवा मित्रों के साथ चर्चा द्वारा इस प्रकार की जानकारी उनके प्रभावित मन को योजनाएं प्रदान करती हैं।
  • स्वयं के रूप रंग के प्रति अप्रसन्नताः यह वह चरण है जहां किशोर उनके रूप के प्रति सबसे अधिक आसक्त रहते हैं चाहे वह चेहरे की सुंदरता हो अथवा शरीर का आकार। वे स्वयं के रूप को सुधारने के लिए किसी भी हद तक जाते हैं तथा जब वे फिर भी संतुष्ट नहीं होते हैं तो उन्हें महसूस होता है कि जीवन जीने योग्य नहीं है। यह एक दुखद स्थिति है जिसे जितना जल्दी हो सके विपरीत किए जाने की आवश्यकता है। सामाजिक परिवर्तन के साथ चिकित्सक द्वारा समय समय पर मध्यवर्तन युवा मन को ऐसे कार्य करने से हतोत्साहित करने के लिए बहुत लंबी दूरी तय कर सकते हैं। इस लेख के दूसरे भाग में हम किशोरावस्था में आत्महत्या को रोकने के संभावित कारणों का पता करेंगे।

Tuesday 10 January 2017

विमुद्रीकरण शिक्षा के क्षेत्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?

हाल ही में हुए विमुद्रीकरण ने अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। कुछ क्षेत्रों जैसे बैंकिग, ई-कार्मस, दूरसंचार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है जबकि मुख्य रूप से नकदी पर निर्भर रहने वाले अचल संपत्ति तथा आभूषण क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। आईए हम शिक्षा के क्षेत्र पर विमुद्रीकरण के अल्पावधि, मध्यावधि तथा लंबी अवधि के प्रभाव को समझते हैं।

ऐसे कुछ विद्यालय हैं जो केवल नकद फीस स्वीकार करते हैं तथा वेतन भी नकद में ही देते हैं, वे अल्पावधि में प्रभावित होंगे। अभिभावकों के पास कुछ महीनों के लिए नकदी की कमी होगी तथा वे विद्यालयों से उदारता बरतने की मांग करेंगे। यह प्रभाव शहर आधारित विद्यालयों व महाविद्यालयों में कम होगा क्योंकि उनमें से अधिकांश चैक स्वीकार करते हैं। ऐसे कुछ संस्थान हैं जो प्रवेश के लिए नकद दान लेते हैं- संभावना है कि आने वाले प्रवेश सत्र में ऐसे संस्थानों के सामने बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है एवं उन्हें उनके वित्तिय प्रारूप का पुर्नगठन करने की आवश्यकता होगी।

मध्यावधि में, शैक्षिक संस्थानों को फीस की वृद्धि में विलंब करना चाहिए क्योंकि बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट है। एक ओर 7वें वेतन आयोग की वेतन संरचना को लागू किया जाना है वहीं दूसरी ओर अचल संपत्ति, कृषि एवं आभूषण जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, जो बहुत से अभिभावकों को रोजगार प्रदान करते हैं। इसलिए, आने वाले 2 वर्षों के लिए सभी पूंजी परियोजनाओं को विलंबित किया जाना चाहिए तथा परिहार्य खर्च समाप्त किया जाना चाहिए।

लंबी अवधि के लिए शिक्षा के क्षेत्र को विमुद्रीकरण से बहुत से सकारात्मक लाभ हैं। यहां तक कि अर्थव्यवस्था का कोई भी क्षेत्र जिसे बैंक वित्तपोषण तथा आय सफेद धन के रूप में प्राप्त होती है, उसका भविष्य उज्जवल है। शिक्षा का क्षेत्र सहज रूप से इस श्रेणी में आता है। सबसे पहले, भूमि स्वामियों के पास उनकी भूमि के लिए बाज़ार नहीं होगा तथा वे विद्यालय के मालिकों को लंबी अवधि के लिए भूमि पट्टे पर देने के लिए सहर्ष तैयार हो जाएंगे। अचल संपत्ति क्षेत्र की हानि शिक्षा के क्षेत्र के लिए लाभ होगी। भूमि स्वामियों को भूमि से लंबी अवधि के लिए स्थायी आय प्राप्त होने की संभावना मिलेगी जो ऐसे समय में प्राप्त करना कठिन है। विद्यालय के मालिकों को अनुकूल शर्तों पर भूमि प्राप्त हो जाएगी तथा बैंक उसे वित्तपोषित करने के लिए सहर्ष तैयार होंगे। बैंक ऋण देने के लिए शिक्षा के क्षेत्र को अपेक्षाकृत एक सुरक्षित क्षेत्र मानते हैं। ब्याज दरों के साथ, बैंक के पास उपलब्ध बड़ी धनराशियों के साथ भारत के बड़े शहरों में नए शिक्षा क्षेत्रों के निर्माण के लिए एक आर्दश संयोजन होगा।

बैंक ना केवल विद्यालयों तथा महाविद्यालयों के निर्माण को वित्तपोषित करता है बल्कि साथ ही शिक्षा ऋण के द्वारा महाविद्यालयों की फीस को भी वित्त पोषित करता है। इतने सारे धन के उपलब्ध होने के साथ, बैंक शिक्षा ऋणों में भी ब्याज दरों को कम कर देंगे। यह महंगी महाविद्यालयीन शिक्षा पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा जो अधिकांश भारतीयों की पहुंच से बाहर थी। चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग शिक्षा जिसमें बहुत सारा पैसा खर्च होता है, उसमें ऋण देना बैंकों के लिए कम जोखिमपूर्ण है क्योंकि स्नातक की उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों को तुरंत अच्छा वेतन प्राप्त होता है एवं वे ऋण चुका सकते हैं। यह गुणवत्ता पूर्ण शैक्षिक संस्थानों के लिए अवसंरचना का निर्माण करने में सहायक होगा तथा  भारतीयों को वह वातावरण देगा जिसकी आवश्यकता उन्हें सही कैरियर का निर्माण करने के लिए है।

कुल मिलाकर शिक्षा के क्षेत्र पर विमुद्रीकरण का एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

Tuesday 3 January 2017

शिक्षक का पंजीकरण शिक्षण को एक सच्चा व्यवसाय बना सकता है

जब मैं एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (अधिकृत लेखापाल) बना, मुझे एक संख्या दी गई। यह संख्या इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया जो भारत में चार्टर्ड अकाउंटेंट व्यवयास की निगरानी करने की संस्था है, के साथ मेरी स्थायी संबद्धता संख्या है। इस संख्या के साथ संस्थान एक सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट) के रोजगार की स्थिति, उस सीए के लिए कोई भी शिकायत, उस सीए के साथ कितने ट्रेनी आर्टिकल्स पंजीकृत है एवं वह सीए कितने ऑडिट कर रहा है, यह देखता है- क्योंकि सीए द्वारा किए जाने वाले ऑडिटों की संख्या की कुछ सीमाएं हैं। इसलिए यदि आप किसी सीए की सेवाएं प्राप्त करना चाहते हैं- चाहे पूर्णकालिक या अंशकालिक समय के लिए तो आपको केवल रजिस्ट्री संख्या व जन्मतिथि पता होने की आवश्यकता है और आप संस्थान की वेबसाइट पर प्रोफाइल प्राप्त कर सकते हैं। आप पूर्व रोजगार व योग्यता प्राप्त करने की तिथि एवं कई अन्य विवरण देख सकते हैं।

इस प्रकार का पंजीकरण विभिन्न व्यवसायिकों के लिए आम है। उदाहरण के लिए, भारतीय पुर्नवास परिषद के पास उन सभी व्यवसायिकों की सूची है जो उनके द्वारा अनुमोदित किए गए हैं। कोई भी वेबसाइट पर जा सकता है व किसी भी पंजीकृत सदस्य की पंजीकरण संख्या व पूरे विवरण की जांच कर सकता है।

शिक्षकों के लिए इस प्रकार की ऑनलाईन खोज पंजीकरण की कल्पना कीजिए। एक सीबीएससी जैसा बोर्ड ऐसा पंजीकरण बनाए रख सकता है एवं विद्यालय शिक्षकों के विवरणों के लिए जांच कर सकता है जैसेः

  • योग्यता प्राप्त करने की तिथि
  • अब तक का अनुभव
  • उपलब्धियां व पुरस्कार
  • विषय किन कक्षाओं में पढ़ाए गए
  • प्रशिक्षण कार्य जिनमें भाग लिया गया 

यह शिक्षकों को आंकने में अभिभावकों की भी सहायता करेगा व यह देखने में भी कि विद्यालय किस प्रकार के शिक्षकों को नियुक्त करता है। एक अच्छी तरह से अनुभव प्राप्त शिक्षक की एक अच्छी ऑनलाइन प्रोफाइल होगी। इन दिनों ऑनलाइन समीक्षा पोस्ट करने की एक अवधारणा है। इसलिए वे अभिभावक जो शिक्षकों की समीक्षा लिखना चाहते हैं, वे ऐसा कर सकते हैं और यह उन शिक्षकों की काफी सहायता कर सकता है जो उसी शहर या भारत में किसी भी अन्य शहर में बेहतर नौकरी की तलाश कर रहे हैं।

भारत में शिक्षकों का अभाव है और इस प्रकार का प्रयास युवाओं को शिक्षण व्यवसाय से जुड़ने व उसके द्वारा एक दीर्घकालीन समय के लिए स्थिर व्यवसाय का निर्माण करने के लिए प्रेरित करने में हमारी सहायता कर सकता है। विभिन्न शहरों व राज्यों में शिक्षकों के आंकड़ो का प्रकाशन प्रवासियों की भी यह निर्णय लेने में सहायता कर सकता है कि रोज़गार के अवसर कहाँ अधिक हो सकते हैं।

यह एक नियुक्ति पोर्टल के रूप में भी बनाया जा सकता है तथा भारत भर के विद्यालय वहाँ से गुणवान शिक्षक प्राप्त कर सकते हैं।

बहुत समय पहले चिकित्सा महाविद्यालय कम चिकित्सकों को नियुक्त करते थे एवं निरीक्षण के दिन वे अन्य महाविद्यालयों से शिक्षक प्राप्त कर लेते थे तथा उन्हें इस प्रकार दर्शाते थे जैसे उन्हें पूर्णकालिक नियुक्त किया गया हो। हालांकि एक विशेष पंजीकरण संख्या को विद्यालय की संबद्धता आईडी से जोड़ कर इस प्रकार की गतिविधि को रोका जा सकता है।

शिक्षकों की संख्या, योग्यता व अनुभव के लिए सीबीएससी के सख्त निर्देश हैं। इस तरह की प्रणाली सबकुछ निर्विवाद प्रवर्तन के साथ लागू करने में सहायता कर सकती है। 

Tuesday 13 December 2016

शिक्षा किस प्रकार भारत में पर्यटन में सहायता कर सकती है?

2015 में भारत में लगभग 80 लाख विदेशी पर्यटक आए। यह फ्रांस व संयुक्त राज्य में से प्रत्येक को प्राप्त होने वाले पर्यटकों का लगभग 10 प्रतिशत - 8 करोड़ है। भारत को विदेशी मुद्रा की अत्यंत आवश्यकता है तथा पर्यटन एक ऐसा उद्योग है जो बहुत सी विदेशी मुद्रा दे सकता है। उदाहरण के लिए, भारत को पर्यटकों से राजस्व के रूप में 21 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए वहीं संयुक्त राज्य को 210 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए। यह भारत जैसे देश के लिए पर्याप्त आय है।

यहां तक कि थाईलैंड जैसे देश को भी 3 करोड़ पर्यटक प्राप्त हुए जिनमें से 10 लाख भारत ने भेजे थे। तो विदेशी पर्यटकों को भारत में लाने के लिए शिक्षा का क्षेत्र क्या कर सकता है?

पर्यटन के क्षेत्र के लिए शिक्षा विभाग द्वारा दो महत्त्वपूर्ण योगदान दिए गए हैं। पहला अंग्रेजी भाषी जनशक्ति की आपूर्ति है। पर्यटन उद्योग लोगों का शारीरिक रूप से किसी देश में आना तथा गाईड, होटल वालों, वेटर, दुकानदार तथा टैक्सी ड्राइवरों से बात करने पर काफी हद तक निर्भर करता है। यदि हम हमारे लोगों को अंग्रेज़ी में बेहतर होने के लिए प्रशिक्षित करें तो हम अतिथियों को बेहतर सेवाएं दे सकते हैं व उन्हें संतुष्ट कर सकते हैं। पर्यटकों को भारत में यात्रा करते समय सहज महसूस करने की आवश्यकता है। संकेतक व निर्देश अंग्रेज़ी में होना चाहिए। भारत अब भी क्षेत्रीय भाषाओं पर बहुत निर्भर करता है व भारत में ऐसे पर्यटन स्थल हैं जहां आप एक भी अंग्रेजी संकेतक नहीं पाएंगे व भारतीय भी उन्हें नहीं समझ सकते हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देना है। पर्यटन उद्योग को एक मज़बूत अवसंरचना की आवश्यकता है। सड़कें, होटल, अच्छी सुविधाएं, शौचालय, गाइड, परिवहन एवं भ्रमण स्थान। ये वस्तुएं पहले घरेलू पर्यटन के लिए विकसित की जाती है तथा उसके बाद विदेशी पर्यटकों के लिए। भारत में 125 करोड़ लोग हैं व लगभग 100 करोड़ घरेलू पर्यटन यात्राएं होती हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यदि भारत विदेशी यात्रियों को आकर्षित करना चाहता है तो पहले उसे स्थानीय पर्यटकों को खुश करना चाहिए।

तो इस चित्र में शिक्षा कहां सही बैठती है? दो शब्दों में: बड़ा सप्ताहांत। भारत धार्मिक दिनों के लिए छुट्टियां प्रदान करता है तथा अधिकांश राज्य बोर्ड विद्यालय वर्ष में 240 दिन कार्य करते हैं। इसका अर्थ है कि शनिवार कार्य-दिवस होता है तथा कोई गारंटी नहीं होती कि वर्ष में लंबे साप्ताहांत की एक विशिष्ट संख्या होगी ही। घरेलू पर्यटन तब तक पनप नहीं सकता है जब तक 3 या अधिक दिन के लंबे सप्ताहांत नहीं होंगे। यह एक समुद्र तट, पहाड़ी क्षेत्र, मनोरंजन पार्क पर एक छोटी यात्रा के लिए आदर्श समय है। एक शनिवार व रविवार के साथ संयुक्त सार्वजनिक छुट्टी एक मजेदार यात्रा के लिए आदर्श समय देगी। यह परिवार के जुड़ने का एक अच्छा अनुभव प्रदान करता है व बच्चों को नियमित जीवन से एक अंतराल मिलता है। गर्मियों व दिवाली की एक लंबी छुट्टी इतनी उपयोगी नहीं है जितनी की हर दो महीनें में तीन दिनों की छुट्टी।

यहां कुछ कदम हैं जो एक भी रूपया खर्च किए बगैर घरेलू पर्यटन को दो गुना बढ़ा सकते हैं:

1.    मानव संसाधन मंत्रालय को विभिन्न राज्य शिक्षा विभागों के साथ संगठित होना चाहिए तथा सभी विद्यालयों में 200 कार्य दिवस का आर्दश स्थापित करना चाहिए।

2.    आगामी रूप से एक कैलेंडर बनाए जहां कुछ छुट्टियां साप्ताहांत के साथ जोड़ी जा सके व स्थानीय छुट्टियों के आधार पर वर्ष में कम से कम 3 बड़े साप्ताहांत प्रदान करे। उन्हें बगैर किसी कारण के कुछ छुट्टियां शुरू करने की आवश्यकता हो सकती है।

3.    समय का प्रबंधन करें ताकि पूरे भारत को यात्रा करने के लिए समान साप्ताहांत ना प्राप्त हो। इस प्रकार पर्यटन अवसंरचना का बेहतर उपयोग होगा।

मुझे यकीन है कि लोग सरकार की सराहना करेंगे क्योंकि यह बच्चों के अध्ययन में कोई कमी ना करते हुए, तनाव कम करेगा व पारिवारिक समय को बेहतर करेगा। 

Saturday 10 December 2016

उच्च शुल्क वसूलने वाले विद्यालयों की समस्या को कैसे हल किया जा सकता है?

हम बहुत बार अभिभावकों को एक विद्यालय में हो हल्ला करते देखते हैं और कारण आमतौर पर शुल्क बढ़ाने के विरोध में प्रदर्शन होता है। अभिभावक वहां घंटों तक बैठे रहते हैं तथा फीस कम करने की मांग करते हैं। प्रबंधन अभिभावकों को शांत करने का प्रयास करता है व कई बार सरकार भी शामिल हो जाती है। यह बहुत ही बुरी स्थिति है और लगभग सभी विद्यालय जीवन में एक बार इसका सामना करते ही हैं। मौजूदा विद्यालय वाले अभिभावक फीस वद्धि का विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं- परंतु नए विद्यालयों का क्या जिनकी फीस अधिक है? उन विद्यालयों के विरूद्ध कोई प्रदर्शन नहीं होता है तथा विकल्पों की कमी के कारण अभिभावकों को ऐसे महंगे विद्यालयों को ही चुनना पड़ता है। इस समस्या को स्थियी रूप से हल करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

हम भारत में दूरसंचार क्रांति से कुछ सीख सकते हैं। लगभग 20 वर्ष पहले, भारत में दूरसंचार परिदृश्य निराशाजनक था - दूरसंचार का प्रसार केवल 8 प्रतिशत था तथा संचार की लागत बहुत उच्च थी। सरकार टेलिफोन लाइन प्रदान किया करती थी एवं हमेशा एक वेटिंग लाइन रहती थी जिसमें बहुत सी गड़बड़ियां रहती थी और जो आमतौर पर ‘‘डेड” रहती थी। हालांकि वस्तुएं अब बदल गई हैं तथा प्रसार लगभग 86 प्रतिशत तक है और हमारी दरें विश्व में सबसे कम हैं। वर्तमान में, शिक्षा क्षेत्र ठीक ऐसी ही स्थिति में है। अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालयों की संख्या बहुत कम है एवं शुल्क बहुत उच्च है। प्रवेश प्राप्त करने के लिए एक आम आदमी को कतार में खड़ा रहना होता है अथवा मोटे प्रवेश शुल्क का भुगतान करना होता है।

वे निर्णय जिन्होंने भारत में दूरसंचार उद्योग को बदल दिया, क्या उन्हें शिक्षा के लिए भी लागू किया जा सकता है? क्या एक 16 रूपए/मिनट का कॉल आजीवन मुफ्त वॉइस कॉल बन सकता है? जिन्होंने एक प्रभाव बनाया वे निर्णय थे-दूरसंचार विभाग का टूटकर वाणिज्यिक परिचालन एवं विनियमों में परिवर्तित होना। इसलिए सेवाएं देने के लिए बीएसएनएल व एमटीएनएल का गठन हुआ तथा नियम बनाने के लिए टीआरएआई (ट्राई) का। इसके अलावा, इस क्षेत्र में बहुत सी प्रतिस्पर्धा को अनुमति दी गई और इसलिए बाज़ार का विस्तरण हुआ तथा कॉल की लागत कम हो गई। हमने सेवा मानकों में सुधार देखा तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का कार्यान्वन लागू किया गया था। जनसंख्या, आर्थिक सुधार तथा दुरसंचार उद्योग के विनियमन में ढ़ील के संयोजन के साथ, भारत विश्व का सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ बाज़ार बन गया।

इसी तरह हम निम्नलिखित निर्णय के साथ शिक्षा क्षेत्र को भी बदल सकते हैं:
1.    प्रत्येक राज्य के शिक्षा विभाग की भूमिका को सेवा प्रदाता से ट्राई जैसे नियामक में विभाजित करना।

2.    निजी कंपनियों, व्यक्तियों तथा भागीदारों को भी विद्यालय चलाने की अनुमति देना। अभी केवल ट्रस्टों को अनुमति है।

3.    सभी नगर निगम व सरकारी विद्यालयों को स्पष्ट उद्देश्यों तथा मापने योग्य परिणामों वाली एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में परिवर्तित करना।

4.    इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी के निवेश को अनुमति देना तथा निजी एवं विदेशी प्रमुखों के लिए एक उच्च शिक्षा विभाग खोलना।

5.    सभी विद्यालयों के लिए गुणवत्ता माप में पारदिर्शता होना ताकि अभिभावक एक सूचित निर्णय ले सकें।

बढ़ती प्रतिस्पर्धा, भारी निवेश एवं पारदर्शिता ने पिछले कुछ वर्षों में भारत को दूर संचार बाज़ार में एक प्रमुख बना दिया है। मुझे यकीन है कि यदि यही सिद्धांत प्राथमिक व महाविद्यालयीन शिक्षा पर लागू कर दिए जाएं, तो समान परिणाम प्राप्त होंगे। हम एक अरब लोग हैं जिनका सपना अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना है। उनके इस सपने को पूरा करने की राह में सरकार क्यों बीच में आ रही है?