Saturday, 10 December 2016

उच्च शुल्क वसूलने वाले विद्यालयों की समस्या को कैसे हल किया जा सकता है?

हम बहुत बार अभिभावकों को एक विद्यालय में हो हल्ला करते देखते हैं और कारण आमतौर पर शुल्क बढ़ाने के विरोध में प्रदर्शन होता है। अभिभावक वहां घंटों तक बैठे रहते हैं तथा फीस कम करने की मांग करते हैं। प्रबंधन अभिभावकों को शांत करने का प्रयास करता है व कई बार सरकार भी शामिल हो जाती है। यह बहुत ही बुरी स्थिति है और लगभग सभी विद्यालय जीवन में एक बार इसका सामना करते ही हैं। मौजूदा विद्यालय वाले अभिभावक फीस वद्धि का विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं- परंतु नए विद्यालयों का क्या जिनकी फीस अधिक है? उन विद्यालयों के विरूद्ध कोई प्रदर्शन नहीं होता है तथा विकल्पों की कमी के कारण अभिभावकों को ऐसे महंगे विद्यालयों को ही चुनना पड़ता है। इस समस्या को स्थियी रूप से हल करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

हम भारत में दूरसंचार क्रांति से कुछ सीख सकते हैं। लगभग 20 वर्ष पहले, भारत में दूरसंचार परिदृश्य निराशाजनक था - दूरसंचार का प्रसार केवल 8 प्रतिशत था तथा संचार की लागत बहुत उच्च थी। सरकार टेलिफोन लाइन प्रदान किया करती थी एवं हमेशा एक वेटिंग लाइन रहती थी जिसमें बहुत सी गड़बड़ियां रहती थी और जो आमतौर पर ‘‘डेड” रहती थी। हालांकि वस्तुएं अब बदल गई हैं तथा प्रसार लगभग 86 प्रतिशत तक है और हमारी दरें विश्व में सबसे कम हैं। वर्तमान में, शिक्षा क्षेत्र ठीक ऐसी ही स्थिति में है। अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालयों की संख्या बहुत कम है एवं शुल्क बहुत उच्च है। प्रवेश प्राप्त करने के लिए एक आम आदमी को कतार में खड़ा रहना होता है अथवा मोटे प्रवेश शुल्क का भुगतान करना होता है।

वे निर्णय जिन्होंने भारत में दूरसंचार उद्योग को बदल दिया, क्या उन्हें शिक्षा के लिए भी लागू किया जा सकता है? क्या एक 16 रूपए/मिनट का कॉल आजीवन मुफ्त वॉइस कॉल बन सकता है? जिन्होंने एक प्रभाव बनाया वे निर्णय थे-दूरसंचार विभाग का टूटकर वाणिज्यिक परिचालन एवं विनियमों में परिवर्तित होना। इसलिए सेवाएं देने के लिए बीएसएनएल व एमटीएनएल का गठन हुआ तथा नियम बनाने के लिए टीआरएआई (ट्राई) का। इसके अलावा, इस क्षेत्र में बहुत सी प्रतिस्पर्धा को अनुमति दी गई और इसलिए बाज़ार का विस्तरण हुआ तथा कॉल की लागत कम हो गई। हमने सेवा मानकों में सुधार देखा तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का कार्यान्वन लागू किया गया था। जनसंख्या, आर्थिक सुधार तथा दुरसंचार उद्योग के विनियमन में ढ़ील के संयोजन के साथ, भारत विश्व का सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ बाज़ार बन गया।

इसी तरह हम निम्नलिखित निर्णय के साथ शिक्षा क्षेत्र को भी बदल सकते हैं:
1.    प्रत्येक राज्य के शिक्षा विभाग की भूमिका को सेवा प्रदाता से ट्राई जैसे नियामक में विभाजित करना।

2.    निजी कंपनियों, व्यक्तियों तथा भागीदारों को भी विद्यालय चलाने की अनुमति देना। अभी केवल ट्रस्टों को अनुमति है।

3.    सभी नगर निगम व सरकारी विद्यालयों को स्पष्ट उद्देश्यों तथा मापने योग्य परिणामों वाली एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में परिवर्तित करना।

4.    इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी के निवेश को अनुमति देना तथा निजी एवं विदेशी प्रमुखों के लिए एक उच्च शिक्षा विभाग खोलना।

5.    सभी विद्यालयों के लिए गुणवत्ता माप में पारदिर्शता होना ताकि अभिभावक एक सूचित निर्णय ले सकें।

बढ़ती प्रतिस्पर्धा, भारी निवेश एवं पारदर्शिता ने पिछले कुछ वर्षों में भारत को दूर संचार बाज़ार में एक प्रमुख बना दिया है। मुझे यकीन है कि यदि यही सिद्धांत प्राथमिक व महाविद्यालयीन शिक्षा पर लागू कर दिए जाएं, तो समान परिणाम प्राप्त होंगे। हम एक अरब लोग हैं जिनका सपना अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना है। उनके इस सपने को पूरा करने की राह में सरकार क्यों बीच में आ रही है? 

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