Saturday 10 December 2016

विद्यालय के विरोध प्रदर्शन केवल वित्तीय कारणों से क्यों होते हैं?

हर वर्ष ये खबरें आती हैं कि अभिभावकों ने विरोध प्रदर्शन किया एवं एक विद्यालय का नाम समाचारपत्र में आता है। आमतौर पर बात यह होती है कि विद्यालय के शुल्क में वृद्धि हुई है तथा अभिभावकों ने एक समूह बनाया है व इसका विरोध करने का निर्णय लिया है। वर्ष दर वर्ष मैंने देखा है कि यही खबर दुहराती रहती है।

अभिभावकों को परिणामों व उनके बच्चे के भविष्य निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए बजाए इसके कि वे कितने शुल्क का भुगतान कर रहे हैं। नमक व चीनी की तरह विद्यालयों को भार के पैमाने पर नहीं मापा जा सकता। कुछ बातें जिनपर अभिभावकों को ध्यान केंद्रित करना चाहिएः


1.    क्या उस कक्षा का पाठ्यक्रम पूरा हो गया है? यदि आप सर्जरी के लिए किसी चिकित्सक के पास जा रहे हैं व चिकित्सक अपने वादे के अनुसार ऑपरेशन तो कर देता है परंतु टांके नहीं लगाता, तो क्या रोगी बच सकेगा? पाठ्यक्रम पूरा ना करना इसी प्रकार की एक समस्या है। 90 प्रतिशत फीस का भुगतान मांगना तथा पाठ्क्रम का 90 प्रतिशत ही पढ़ाना, दीर्धकाल तक बच्चों की सहायता नहीं कर पाएगा।

2.    क्या शिक्षक बच्चों की कॉपी जांच रहा है? शिक्षक को बच्चों का कक्षा कार्य तथा गृह कार्य जांचना ही चाहिए। हालांकि कई शिक्षक नहीं करते हैं। माता पिता यह घर पर आसानी से देख सकते हैं। कभी कभी गलत उत्तरों को भी सही का निशान लगा दिया जाता है और इसलिए बच्चे को पता नहीं चलता कि उसने जो समझा है वह गलत है।

3.    क्या प्रश्न पत्र अत्यधिक आसान बनाया गया है? एक शिक्षक को पता होता है कि बच्चों को एक विशेष विषय समझ नहीं आया है। इसलिए अतिरिक्त समय लेकर उस विषय को समझाने की जगह वे परीक्षा में उस विषय से संबंधित प्रश्न ही नहीं पूछते या फिर उसमें से आसान प्रश्न पूछते हैं।

4.    क्या शिक्षक परीक्षा में अंक देने में उदारता दिखा रहे हैं? जब उनके बच्चों को अच्छे अंक प्राप्त होते हैं तो अभिभावक प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए कभी कभी शिक्षक बच्चे को उसकी योग्यता से अधिक अंक प्रदान कर देते हैं। कभी कभी यह प्रोत्साहन के लिए होता है जबकि अन्य समय में ऐसा नहीं होता।

5.    सुनिश्चित करना कि बच्चा होमवर्क करता है। फीस के मामले में अभिभावकों के विरोध प्रदर्शन को समाचार पत्र में स्थान प्राप्त होता है परंतु अभिभावक उनके बच्चों का गृहकार्य नहीं देखते यह सुर्खियां बटोरने लायक बात नहीं है। अधिकांश अभिभावक उनके बच्चों की पढ़ाई के बारे में तभी सोचते हैं जब परीक्षा समीप आ रही हो। अन्यथा बच्चों द्वारा कक्षा कार्य/गृह कार्य समय पर किए जाने के बारे में कोई परवाह नहीं करते हैं।

6.    ऐसे विषय जिनकी कोई परीक्षा नहीं होती, क्या उनमें बच्चा कुछ सीखता है- विषय जैसे कि शारीरिक शिक्षा, कला व शिल्प, संगीत जिनके लिए कोई परीक्षा व अंक नहीं होते हैं, उनमें बच्चा क्या सीख रहा है। क्या यह बच्चे के लिए केवल समय की बर्बादी है।

7.    यदि एक सप्ताह में कई बार बच्चे को फ्री पीरियड मिल रहा हो-तो विद्यालय उसका काम अच्छे से नहीं कर रहा है। क्या अभिभावकों को इस बात की चिंता है कि विद्यालय बच्चों के लिए शिक्षकों का प्रबंध करने में असमर्थ है?

8.    क्या बच्चों के मित्र अच्छे हैं? यदि बच्चा बुरी संगत में पड़ जाता है तो अध्ययन प्रभावित होता है। एक बच्चे की शिक्षा के लिए मित्र भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितने की शिक्षक। बच्चों को सतर्क रहना चाहिए कि बच्चा किस तरह के मित्रों के साथ समय व्यतीत कर रहा है।


9.    क्या विद्यालय के शौचालय कार्य कर रहे हैं? विद्यालय की सुविधाएं भी उतनी ही अच्छी होनी चाहिए जितनी के उनके कर्मचारी। अभिभावकों को ऐसी छोटी बातों के बारे में भी सावधान रहना चाहिए क्योंकि बच्चों को विद्यालय के शौचालय से विभिन्न प्रकार के भय हो सकते हैं। कई बच्चे शौचालय जाने से बचते हैं व फलस्वरूप विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं।

अभिभावकों को उनकी ऊर्जा अपने बच्चों के विकास पर लगानी चाहिए बजाए इसके कि एक विद्यालय कितना शुल्क वसूल रहा है। इस प्रकार बच्चे तथा संपूर्ण शैक्षिक क्षेत्र का भविष्य उज्जवल होगा।


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