अमेरिकी हार्ट
एसोसिएशन ने निर्णय लिया है कि एक व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए एक दिन में
10,000 कदम चलना आदर्श है। वर्तमान में स्वास्थ्य न केवल वयस्कों के लिए बल्कि बच्चों
के लिए भी चिंता का विषय है। बचपन का मोटापा हमारी भविष्य की पीढ़ी के लिए सबसे बड़े
खतरों में से एक है। एक बार बच्चे के मोटा अथवा अधिक वज़न के होने के बाद वह वयस्क बनने
पर भी वैसा ही रहता है। यहां तक की यह एक आजीवन की समस्या हो जाती है। परिवारों के
एक या दो ही बच्चे होने के कारण उनके भोजन व पार्टी के लिये बजट बढ़ गया है। बच्चों
को अच्छी तरह से खिलाया जाता है और अधिकांश बार अधिक खिलाया जाता है। परंतु यह समस्या
का एक ही भाग है। अन्य भाग विद्यालय के दौरान उनकी गतिविधियों का स्तर।
बच्चे विद्यालय
में प्रतिदिन 6 घंटे व्यतीत करते हैं। अधिकांश समय वे बैठे रहते हैं। कई विद्यालयों
ने विद्यालय के दिनों में गतिविधि की योजना बनाई है। रीसेस में उन्हें खेलने व कुछ
शारीरिक गतिविधि करने का अवसर प्राप्त होता है। घर जाने के बाद कुछ बच्चे टीवी देखते
हैं व कुछ पढ़ाई करते हैं। एक आयु समुह के बच्चे ना होने के कारण या सुरक्षा चिंताओं
के कारण सभी बच्चे घर जाने के बाद नहीं खेलते हैं।
जब वे किशोरावस्था
में पहुंचते हैं जहां उनके शरीर अधिक ऊर्जावान होते हैं वहीं उनकी पढ़ाई का भार भी बढ़
जाता है इसलिए उन्हें शारीरिक गतिविधि करने की बजाये बैठ कर पढ़ाई करने में अधिक समय
व्यतीत करना होता है।
तो अगली पीढ़ी
के मन में फिटनेस को अंतर्निहित करने का एक ही तरीका है। हमें बच्चों को उनके 9वीं
कक्षा में जाने से पहले ही सक्रिय करना होगा। सबसे आसान तरीकों में से एक है विद्यालय
की समय सारिणी में सप्ताह के हर दिन एक शारीरिक गतिविधि का पीरियड़ होना। एक बार मैंने
एक विद्यालय की समयसारिणी देखी जहां सप्ताह का एक दिन एक कक्षा को विभिन्न गतिविधियों
के लिए सर्मपित था। उदाहरण के लिए मंगलवार को दूसरी कक्षा गतिविधि के लिए जाती है वहीं
बुधवार को तीसरी कक्षा जाती है। यह देखना दिलचस्प था कि बच्चे जो आलसी थे वे उन दिनों
में अनुपस्थित हो जाते थे।
मैंने प्रधानाध्यापिका
से पूछा कि पीरियड़ों के वितरण का यह विशिष्ट तरीका क्यों है और उन्होंने कहा कि इन
दिनों में लड़कियां उनकी फ्रॉक के भीतर पजामा पहनती थी ताकि वे सभी गतिविधियों में भाग
ले सकें। तभी मेरे मन में एक प्रश्न उठा कि लड़के तो रीसेस में खेल लेते होंगे परंतु
उन दिनों में लड़कियां क्या करती होंगी-पजामा नहीं- तो शारीरिक गतिविधि नहीं!
इससे एक महत्त्वपूर्ण
अवलोकन प्राप्त हुआ। लड़कियां रीसेस में आमतौर पर खाना खाती थीं व गपशप करती थीं जबकि
लड़के शारीरिक गतिविधि करते थे। सभी विद्यार्थियों को व्यायाम की दैनिक खुराक नहीं मिल
पा रही थी बल्कि सप्ताह के एक विषेश दिन वे सारे व्यायाम कर रहे थे। अंततः लड़कियों
का वज़न आदर्श स्थिति से अधिक बढ़ रहा था। दूसरी तरफ लड़के भी लापरवाह थे क्योंकि उनकी
गतिविधि के पीरियड कम थे।
अहमदाबाद
के दो विद्यालय-उद्गम व ज़ेबर ने लड़कियों को ट्राउज़र (पतलून) दी हैं व उनकी समय सारिणी
में प्रतिदिन एक गतिविधि का पीरियड दिया है। ऐसा करने के वर्षों बाद बच्चों के स्वास्थ्य
में एक उल्लेखनीय सुधार आया है व वे विद्यालय आने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं- इसलिये
अनुपस्थितियों का स्तर नीचे चला गया है। आमतौर पर विद्यार्थियों की प्रतिरोधक क्षमता
बढ़ी है व इसलिये बीमारी के दिन भी कम हुए हैं। कुल मिला कर विद्यालय के शैक्षणिक मानक
ने एक निरंतर सुधार दर्शाया है।