Friday 4 November 2016

बच्चे और टीवी

बच्चों के लिए छुट्टियों का अर्थ है टीवी देखने का समय-सरकार को कदम उठाने की आवश्यकता है। गुजरात में दिवाली की छुट्टियों का अर्थ है 15 से 20 दिन की छुट्टियां। अधिकांश व्यापार भी लगभग एक सप्ताह तक बंद रहते हैं और कई अभिभावक अपने बच्चों को छुट्टियों में घुमाने ले जाते हैं। जब तक विद्यालय बंद रहते हैं, उतने सभी दिनों तक अभिभावकों की छुट्टियां नहीं होतीं, इसलिए बच्चे घर पर स्वतंत्र होते हैं और उनके पास करने के लिए अधिक कुछ होता नहीं है। इसलिए लगभग 90 प्रतिशत बच्चे दिन में 3 घंटों से अधिक समय तक टी.वी देखते हैं। यह बहुत से अभिभावकों के लिए एक समस्या है। हालांकि सरकार इस समस्या को एक अवसर में बदल सकती है।

संयुक्त राज्य में सरकार ने 1990 में बच्चों की टीवी के लिए एक विनियमन लागू किया था। तो बच्चों के लिए किसी भी टीवी चैनल को इन नीयमों का पालन करना होगाः

  1. बच्चों के कार्यक्रम केवल सुबह 7 बजे से रात के 10 बजे तक प्रसारित होने चाहिये।
  2. प्रति सप्ताह तीन घंटे के कार्यक्रम प्रसारित किए जाने चाहिये जिसमें मनोरंजन के साथ या तो बच्चों के लिए शिक्षा अथवा जानकारी होनी चाहिये।
  3. ऐसे कार्यक्रमों पर ई/आई का चिन्ह लगा होना चाहिये।
  4. लंबाई में कम से कम तीस मिनट होना चाहिये एवं उसकी तारीख व समय को पहले से सूचित किया जाना चाहिये।
  5. चैनल प्रति घंटे केवल 10 से 12 मिनट के विज्ञापन दिखा सकता है।
  6. कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य वाणिज्यिक प्रयोजन नहीं है।
  7. कार्यक्रम के दौरान कोई भी वेबसाइट प्रदर्शित नहीं की जानी चाहिये।

इन नीयमों पर अधिक जानकारी इस पर उपलब्ध हैः

भारत को ऐसे नियमों की आवश्यकता है। हमारे टेलिविज़न कार्यक्रम बच्चों की सहायता नहीं कर रहे बल्कि उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं। आज के बच्चे भीम को को उनके माता पिता की अवधारणा से बिल्कुल भिन्न चरित्र के रूप में जानते हैं। छोटा भीम की महाभारत के भीम के साथ केवल एक ही समानता है। लड्डू के प्रति उसका प्रेम। रोल नम्बर 21-कृष्ण की एक पूर्णतः गलत छाप देता है और बच्चे उसे बहुत पसंद करते हैं। यदि आप सेसम स्ट्रीट व डिज़्नी क्लब हाउस देखें तो आप पाएंगे कि वहां मनोरंजन के साथ ही बहुत सारी शैक्षिक सामग्री भी मौजूद होती है। यहां तक कि ऐसे टीवी कार्यक्रमों ने कुछ क्षणों तक दर्शक द्वारा प्रतिक्रिया देने का इंतज़ार करते हुए कार्यक्रम के पात्रों के मध्य बातचात को लागू किया है। डोरा दि एक्सप्लोरर एवं जेक दि नेवरलैंड पाइरेट्स काफी संवादात्मक कार्यक्रम हैं भले ही वे सूचना के आधार पर सीमित हैं।

सरकार को भारतीय टीवी सेगमेंट का विनियमन करना होगा अन्यथा बच्चों के मस्तिष्क का विकास प्रभावित होगा। बगैर किसी शारीरिक गतिविधि के घंटों तक टीवी देखने से बच्चों की सेहत के लिए समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी। इसके अलावा बेकार कार्टून मस्तिष्क की स्पष्ट रूप से सोचने की क्षमता को भी प्रभावित करते हैं। एक बच्चा जो प्रतिदिन 2 घंटे से अधिक टीवी देखता है, उसे 15 मिनट से अधिक देर टीवी ना देखने वाले बच्चे से कम रचनात्मक पाया गया है। मुझे आश्चर्य होता है कि डोरेमोन बच्चों को कौन से शिक्षाप्रद मूल्य प्रदान करता है? अंग्रेज़ी कार्टून देखने से बच्चों के अंग्रेज़ी बोलने के कौशल में सुधार हो सकता था परंतु वे भी अनुवादित हैं व हिन्दी में उपलब्ध हैं। इससे, थोड़ा बहुत लाभ जो वे दे सकते थे वह भी समाप्त हो जाता है!

यदि अभिभावकों के पास बच्चे को उत्पादक रूप से संलग्न करने के लिए कोई वैकल्पिक साधन नहीं है तो वे भी समान रूप से दोषी हैं। एकल परिवारों में पर्याप्त चचेरे व सगे भाई-बहन नहीं होते एवं कॉलोनी में दोस्त अधिक नहीं होते हैं जिनके साथ बच्चे खेल सकें। पज़ल, वर्ग पहेली, सुडोकु, शब्द खोज, बोर्ड खेल, कला व शिल्प, चित्रकारी व पुस्तकें पढ़ने को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।


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