Friday 4 November 2016

विद्यालयों का भविष्य- आर्थिक व्यवहार्यता संदेह में

विद्यालयों को अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में इस्तेमाल किया गया है। उन्हें बच्चों को विकास करना व ऐसी नौकरियां लेना सिखाना चाहिये जिसमें शिक्षा की आवश्यकता हो। ये नौकरियां अच्छा वेतन देने वाली होती हैं और इस तरह वे देश की अर्थव्यवस्था बढ़ाती हैं। हालांकि सरकार स्वयं विद्यालयों की अर्थव्यवस्था के बारे में कभी नहीं सोचती है। उनके वित्तीय दृष्टिकोण से विद्यालयों के आने वाले 5 वर्षों के लिए मेरा पुर्वानुमान हैः

1. हर शिक्षक का वेतन बढ़ेगाः 7वां वेतन आयोग शिक्षकों के वेतन को 20 प्रतिशत से 35 प्रतिशत तक बढ़ा देता है। फिर लगभग 13 प्रतिशत से वार्षिक तौर पर वेतन बढ़ेगा जब तक अन्य वेतन आयोग नहीं बन जाता। इसका अर्थ है कि उसी शिक्षक को उतने ही समय में वही कार्य करने के लिए अधिक भुगतान किया जाएगा। शिक्षक की उत्पादकता या गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं है-केवल वेतन बढ़ेगा। शिक्षक के जीवनयापन की लागत में वृद्धि हुई है इसलिए वेतन की यह वृद्धि उचित हो सकती है परंतु हम यहां पर उस विषय की चर्चा नहीं कर रहे हैं।

2. कुल कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि होगीः पिछले कुछ वर्षों में सीबीएसई शिक्षण व गैर शिक्षण कर्मचारियों का रोज़गार अनिवार्य कर रहा है। उदाहरण के लिए, परामर्शदाता, विशेष शिक्षक, आत्मरक्षा शिक्षक की भर्ती व इस तरह के कई पदों की रचना सीबीएसई द्वारा की गई है। यह विद्यालय के संपूर्ण वेतन व्ययों को बढ़ा देता है।

3. 25 प्रतिशत सीटें आरटीई के बच्चों के लिए आरक्षित हैं। निर्धन बच्चों को अनिवार्य रूप से निःशुल्क शिक्षा दी जानी है। सरकार बच्चे के लिए केवल नाममात्र की लागत की प्रतिपूर्ति करेगी। यह बोझ स्वाभाविक रूप से विद्यालय पर पड़ेगा क्योंकि उनकी कुल शुल्क वसूली 25 प्रतिशत कम हो जाएगी। अभी बच्चों की संख्या 25 प्रतिशत क्षमता तक नहीं पहुंची है हालांकि यह स्पष्ट संकेत है कि आने वाले 5 वर्षों में ऐसा होगा।

4. शिक्षकों को निरंतर प्रशिक्षण की आवश्यकता हैः शिक्षकों को निरंतर प्रशिक्षण की आवश्यकता है क्योंकि दुनियाभर में शिक्षा का क्षेत्र बड़ी तेज़ी से बड़ रहा है। जल्दी व बेहतर पढ़ाने के लिये नई तकनीकें हैं जिनका पता लगाने की व शिक्षकों को सिखाने की आवश्यकता है। इसमें बहुत से पैसों की आवश्यकता है। यह अनुमानित है कि विद्यालयों को शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उनके वेतन के 10 प्रतिशत का बजट होने की आवश्यकता है।

5. अवसंरचना की गुणवत्ता में वृद्धि होना चाहियेः विद्यालय की इमारत व प्रौद्योगिकी को लगातार सुधारने की व बनाए रखने की आवश्यकता है। 5 वर्ष पहले विद्यालय में कोई सीसीटीवी केमरे नहीं हुआ करते थे -परंतु आज के विद्यालयों के लिए यह अनिवार्य है। यह केवल एक उदाहरण है कि विद्यालयों को किसमें निवेश करने की आवश्यकता है।

6. विद्यालयों से अभिभावकों की अपेक्षा बढ़ती ही रहती हैः अभिभावक विद्यालय से आशा रख रहे हैं कि वे सीबीएसई द्वारा अनिवार्य पाठ्यक्रम के अलावा भी कई वस्तुएं सिखाएं। विद्यालयों को शिष्टाचार, अंग्रेज़ी में बात करना व कई अन्य वस्तुएं सिखानी चाहिये। हर वस्तु में पैसे नहीं लगते पर बहुत सी वस्तुओं में लगते हैं।

7. शुल्क में वृद्धि को 10 प्रतिशत पर नियंत्रित किया जाता हैः उन्हीं अभिभावकों से विद्यालय द्वारा लिये जाने वाले शुल्क को 10 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है। तो जहां विद्यालय के खर्च वर्ष दर वर्ष 20 प्रतिशत से अधिक से बढ़ रहे हैं उनकी आय केवल 10 प्रतिशत से बढ़ेगी- इसका परिणाम क्या होगा?

जब तक सरकार स्वयं द्वारा वित्तपोषित विद्यालयों के प्रति उसका रवैया नहीं बदलती मुझे यकीन है कि अगले पांच वर्षों में निजी विद्यालय कष्ट भुगतने वाले हैं व निजी विद्यालयों की गुणवत्ता सरकारी विद्यालयों से भिन्न नहीं होगी। यह भारतीय अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालीन प्रभाव डालेगा व भारत को 15 वर्ष पीछे धकेल देगा।

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