गुज़रात राज्य
शिक्षा बोर्ड ने तेज़ी से अपने पाठ्यक्रम में संशोधन करने का फैसला किया है। मामलों
को सरल बनाने के लिए 9वीं से 12वीं कक्षा के लिए एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों की नकल की
जाएगी व 2017 में उपयोग के लिये लागू की जाएगी। कई वर्षों से गुजरात सरकार दावा कर
रही थी के गुजरात का पाठ्यक्रम आर्दश था व बच्चे प्रवेश परीक्षा का समाना अच्छी तरह
से करने में सक्षम होंगे परंतु अचानक सरकार ने उसी पाठ्य्क्रम का पुनर्निमाण करने का
फैसला लिया है।
इस निर्णय
के साथ कुछ समस्याएं हैं। जहां हमें एनईईटी के माध्यम से मेडिकल प्रवेश आयोजित करने
के निर्णय के लिए खुश होना चाहिये, गुजरात सरकार ने पाठ्यपुस्तकें बदलने का निर्णय
लिया है। प्रश्न उठता है कि सरकार ने राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढ़ांचे को 11 वर्ष तक क्यों
नहीं अपनाया?
एक बच्चे
का प्रशिक्षण धीरे धीरे होता है, वह 15 वर्ष की अवधि का समय विद्यालय में गुज़ारता है।
11 वर्षों तक पढ़ाया गया पाठ्यक्रम गुजरात बोर्ड के पाठ्यक्रम पर आधारित था और अचानक
से बच्चे को सीबीएसई पाठ्यक्रम को अपनाना होगा। इसे पहले प्राथमिक कक्षा से बदलना होगा
फिर माध्यमिक कक्षाओं से ताकि वही बैच आधारभूत वर्षों से ही भिन्न पाठ्यक्रम से परिचित
हो जाएं।
यह प्रश्न
भी उठता है कि क्या हर बच्चा उस पाठ्यक्रम को अपनाने में सक्षम है जिसे चिकित्सकीय
व ईंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के लिए प्रवेश परीक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है। हम सुर्खियों
में देखते हैं कि शीर्ष महाविद्यालयों के लिए कट ऑफ अंक बहुत उच्च अंको पर समाप्त होते
हैं। यह कहानी पढ़ने में बहुत दिलचस्प है कि किस प्रकार एक उम्मीदवार को उसकी पसंद के
महाविद्यालय में प्रवेश नहीं मिल पा रहा जिसने 96 प्रतिशत अंक प्राप्त किये हैं। परंतु
ज़मीनी वास्तविकता पर स्थिति बहुत अलग है। जहां कट ऑफ से संबंधित बातें सच हैं वहीं
मुश्किल से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या उन विद्यार्थियों की संख्या
से कहीं ज़्यादा है जिन्हें शीर्ष महाविद्यालयों में कुछ अंको की वजह से प्रवेश नहीं
मिला।
वे विद्यार्थी
जो राज्य बोर्ड में औसत से कम प्रदर्शन करते हैं, एनसीईआरटी पाठ्यक्रम अपनाए जाने के
कारण अनुत्तीर्ण होने के लिए विवश हैं। उनके लिये राज्य बोर्ड की किताबों से ही उत्तीर्ण
होना कठिन है, जिन्हें आसान समझा जाता है। इसके अलावा ये वे विद्यार्थी हैं जहां अभिभावक
अतिरिक्त ट्यूशन की कीमत वहन करने में समर्थ नहीं है और इसलिये उन्हें विद्यालयीन शिक्षकों
पर निर्भर रहना होता है। ये शिक्षक वर्षों से राज्य बोर्ड की पुस्तकें पढ़ा रहे हैं
व अचानक से एनसीईआरटी में परिवर्तन से उन्हें झटका लगेगा।
बच्चे उनके
जीवन का केवल 10 प्रतिशत भाग कक्षा में व्यतीत करते हैं व 90 प्रतिशत सीखना विभिन्न
वस्तुओं द्वारा होता है जिसमें अभिभावकों से सहायता शामिल है। अब यदि अभिभावक स्वयं
ही कम ग्रेड में पढ़ने वाले उसके बच्चे की सहायता नहीं कर सकता तो बच्चा किस प्रकार
अध्ययन का सामना करेगा?
समाधान यह
है कि हमें बच्चे की आवश्यकता व अभिभावकों की क्षमता से मेल खाता हुआ एक पाठ्यक्रम
चाहिये। एक अशिक्षित अभिभावक की आवश्यकता शायद उसके बच्चे को किफायती शिक्षा दिलाने
की हो सकती है वहीं उच्च शिक्षित अभिभावक उसके बच्चे को वैज्ञानिक बनाना चाहता हो।
हमें उन बच्चों के लिए अलग पाठ्यक्रम की आवश्यकता है जो व्यावसायिक पशिक्षण प्राप्त
करना चाहते हैं, एक सामान्य स्नातक स्तर की पढ़ाई करना चाहते हैं व उन बच्चों के लिए
जो उन्नत अध्ययन करना चाहते हैं। यदि हम इन पहलुओं को अलग नहीं करेंगे तो मुझे यकीन
है कि इन पाठ्यपुस्तकों को बदले जाने के बाद आने वाले पांच वर्षों में विद्यालय छोड़कर
जाने वालों का अनुपात 56 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत हो जाएगा। हमें शिक्षकों की गुणवत्ता
की ज़मीनी वास्तविकता भी देखनी होगी कि क्या वे नए पाठ्यक्रमों को पढ़ाने में सक्षम हो
पाएंगे?
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