Tuesday 6 September 2016

क्यों ‘‘बोर्ड’’ की परीक्षाएं अधिक होनी चाहिए?

जब भी कोई ‘बोर्ड’ परीक्षा शब्द का उल्लेख करता है, वयस्कों को भयावह अनुस्मरण हो जाते हैं। यहाँ तक कि वे बच्चे जिन्होंने कभी बोर्ड परिक्षाओं का अनुभव नहीं किया, उन्होंने भी इसके विषय में इतनी कहानियाँ सुनी है कि वे भी भयभीत हो जाते हैं। तो वर्तमान में हमारे पास बोर्ड़ की दो परिक्षाएँ हैं। पहली 10वीं में व दूसरी 12वीं में है। सी.बी.एस.सी. ने उन्ही विद्यालय के शिक्षकों से उत्तरपुस्तिका का मूल्यांकन करवा कर 10वीं बोर्ड परीक्षा के महत्त्व को कम करने का प्रयास किया है। खैर हम जानने का प्रयास करते हैं कि बोर्ड परीक्षाएँ करतीं क्या हैं?

  • यह सभी बच्चों का मूल्यांकन समान स्तर पर करती है इसलिए समग्र राष्ट्र (या राज्य) के बच्चों का मूल्यांकन एक ही प्रश्नपत्र व एक ही अंकन स्वरूप के आधार पर किया जा सकता है व उनका परिणाम एक साथ ही घोषित किया जाता है। इससे महाविद्यालय को यह निर्णय लेने में सहायता मिलती है कि किसे प्रवेश दिया जाना है।
  • यह अभिभावकों को विद्यालय के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में सहायता करती है कि क्या विद्यालय अच्छी तरह से पढ़ा रहा है। 

मुझे लगता है कि बोर्ड परीक्षाएँ विभिन्न कारणों से हर वर्ष ली जानी चाहिए (5वीं कक्षा के बाद)।

पहला यह कि इससे विद्यार्थी 12वीं कक्षा की कड़ी चुनौती का सामना करने के लिए प्रशिक्षित हो जाते हैं जिसके आधार पर उनके भविष्य का निर्णय होगा। इस प्रकार वे सभी तैयार रहेंगे।

दूसरा, उसी शिक्षक द्वारा पढ़ाया जाना व उसी के द्वारा मूल्यांकन किए जाने से हितों का टकराव पैदा होता है। ‘‘मोसल मा जमवानु अने मां पिरसनार’’। शिक्षिका उन्हीं प्रश्नों को दोहराते हुए पढ़ा सकती है जिन्हें वह परीक्षा में पूछने वाली है। ऐसे मामले हुए हैं जहाँ अंक प्रदान करने में शिक्षक उदार रहे हैं।

तीसरा, अभिभावक और अधिक प्रभावी ढंग से विद्यालय चुन सकते हैं, जब ऐसे परिणाम प्रकाशित होते हैं। तो वे मुल्यांकन कर सकते हैं कि कौन-सा विद्यालय वास्तव में अच्छी शिक्षा प्रदान करता है व उन्हें किस विद्यालय में उनके बच्चे को रखना चाहिए।

मेरा विचार है कि यदि सरकार एक समान प्रश्न पत्र का निर्णय ले व अन्य विद्यालय के  शिक्षकों से अज्ञात रूप से मुल्यांकन करवाएं, अभिभावक वास्तव में निष्पक्ष रूप से बच्चे व विद्यालय के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में सक्षम होंगे। मैंने यह भी देखा है कि ऐसी परिक्षाएं पाठ्यक्रम के बेहतर गठन में सहायक हो सकती हैं। उन अवधारणाओं को पाठ्यपुस्तक में अच्छी तरह से शामिल करने की आवश्यकता है जिन्हंे अधिकांश विद्यालय के बच्चे समझ नहीं पाते हैं। निरंतर बुरे परिणामों वाले विद्यालयों का अधिक निरीक्षण किया जाना चाहिए व उनके स्तर को सुधारने के लिए समय पर सहायता दी जानी चाहिए।

हमें शिक्षक के वेतन व प्रोत्साहन (इंसेंटिव) को विद्यार्थियों के प्रदर्शन के साथ जोड़ना चाहिए ताकि अच्छे शिक्षकों को पुरस्कृत किया जाए व कमतर प्रदर्शन वाले शिक्षक प्रमाणित सफल शिक्षक से सीख सकें। अन्य महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन मापक जो तभी किया जा सकता है जब यह तंत्र उस योग्य हो ‘‘सुधार माप’’ तो यदि गणित का एक 8वीं कक्षा के शिक्षक को ऐसे विद्यार्थी प्राप्त होते हैं जिनका 7वीं कक्षा का मानक औसत परिणाम मान लीजिए 40 प्रतिशत था। यह मेहनती और बुद्धिमान शिक्षक उन परिणामों को मान लीजिए 60 प्रतिशत के औसत तक लेकर आया। शहर भर में 8वीं कक्षा के अन्य शिक्षक औसत परिणामों में केवल 5 प्रतिशत का ही सुधार ला पाने में सक्षम हुए, तब स्पष्ट तौर पर, परिणाम में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी उस विशेष शिक्षक की वजह से ही हुई है एवं अन्य शिक्षकों को भी अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करने के लिए उसे इंसेंटिव दिया जाना चाहिए।

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