Tuesday 6 September 2016

क्या भविष्य में बच्चों की संख्या अधिक होगी?

विश्व की जनसंख्या 7.3 अरब है और जब से इसने 1 अरब के आंकडे को पार किया है, तबसे समीक्षक कहते आ रहे हंै कि विश्व और अधिक लोगों को नहीं रख सकता। अभी तक तो वे लोग गलत साबित हुए हैं। परंतु भविष्य में क्या होगा? वैश्विक जनसंख्या वृद्धि कब समाप्त होगी? मेरे दादाजी के 13 भाई बहन थे, मेरे पिताजी के 5 थे और मेरा एक था। मेरे पिताजी की समआयु के 99 प्रतिशत लोगों के 2 से अधिक भाई बहन होने पर भी उनके 2 से अधिक बच्चे नहीं है। तो एक पीढ़ी में क्या परिवर्तित हो गया और एक घरपरिवार में बच्चों की संख्या भारी रूप से क्यों गिर गई?

मैं प्रोफेसर हेंस रोसलिंग का एक बडा प्रश्ंासक हूँ, जिनके काफी सारे विड़ियो आॅनलाइन हैं जो इस पर प्रकाश डालते हैं कि किस प्रकार भविष्य में जनसंख्या बढ़ेगी। उनका कहना है कि एक माता के बच्चों की संख्या व उसके धर्म में अधिक संबंध नहीं है। प्रति महिला बच्चों की संख्या पर प्रभाव डालने वाले महत्त्वपूर्ण कारक हैं:

  • शिशु मृत्यु दर
  • माता की शिक्षा
  • आय में वृद्धि
  • विवाह की उम्र में वृद्धि
  • कामकाजी महिलाओं मंे वृद्धि


प्रो. रोसलिंग के अनुसार विश्व जनसंख्या 10 अरब तक पहुँच जाएगी व उस संख्या को पार नहीं करेगी। इस संख्या के पीछे उनके विभिन्न सांख्यिकीय प्रारूप हैं। तद्यपि रोचक तथ्य यह है कि हम ‘उच्चतम शिशु’ संख्या पर पहुँच चुके हैं। हम वर्तमान में बच्चों की संख्या से अधिक संख्या तक नहीं पहुँचने वाले हैं। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होने के कारण यद्यपि हमारे पास हमेशा से 2 अरब बच्चे थे, विश्व की कुल जनसंख्या 3 अरब और बढ़ेगी व यह संख्या वहीं कायम रहेगी।  

तो विद्यालय के लिए क्या भविष्य है? यदि विश्व में बच्चों की संख्या नहीं बढ़ने वाली तो हमंे  नए विद्यालयों की आवश्यकता क्यों है और क्या उनके पास बुनियादी ढ़ाँचे को बनाए रखने के लिए पर्याप्त बच्चे होंगे?

उत्तर है स्थानांतरण व अभिभावकों की आवश्यकताओं में परिवर्तन।

भारत का 70 प्रतिशत भाग गाँवों में रहता है। किसी भी विकसित अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत से अधिक लोग गँावों में निवास नहीं करेंगे। इसलिए यदि हम आशा करें कि आने वाले 10 वर्षों में हम 50 प्रतिशत शहरीकरण प्राप्त कर लेंगे, तो हम 24 करोड़ लोगों के शहर में आकर निवास करने के विषय में बात कर रहे हैं। यदि वे 100 मुख्य शहरों में आकर रहेंगे, तो इस प्रकार हर शहर में प्रतिवर्ष 2.4 लाख लोग जुडें़गे। वे अपने साथ बच्चों को लाएँगे जिन्हें शिक्षा की आवश्यकता होगी। इसलिए शहरों में विद्यालयों का निर्माण किया जाना आवश्यक है।

एक और बड़ी समस्या माता-पिता की आवश्यकताओं में परिवर्तन है। पहले गुजराती माध्यम विद्यालयों की माँग थी। अब अंगे्रज़ी माध्यम विद्यालयों की माँग है। महानगरों में लोग सी.बी.एस.ई. विद्यालयों को प्राथमिकता देते हैं ताकि नौकरी के लिए एक शहर से दूसरे शहर में स्थानांतरित होने में कठिनाई ना आए। धनी लोग अंतराष्ट्रीय विद्यालय को प्राथमिकता देते हैं जिनका एक अलग ही स्तर होता है। इसलिए विद्यालयों को बदलते समय के साथ स्वयं को बदलना होगा। पहले तैराकी व घुड़सवारी का विद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा होना दूर की कौड़ी लग रहा था। आज कुछ विद्यालय हैं जो अभी से ही वह प्रदान कर रहे हैं और भविष्य में छोटे विद्यालय बंद हो जाएँगे व ऐसे आधुनिक विद्यालय बढ़ेंगे।

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