Tuesday 6 September 2016

धनी अथवा निर्धन: आपको चेरिटेबल (धर्माथ) ट्रस्ट द्वारा संचालित विद्यालयों में ही अध्ययन करना होगा।

चाहे आप मुकेश अंबानी जितने धनी व्यक्ति ही क्यों ना हों, जब तक कोई उदार व्यक्ति चेरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत कोई विद्यालय नहीं खोल लेता तब तक सवाल ही नहीं उठता कि आप आपके बच्चे को शिक्षा दिलाएँगे। चाहे फीस (शुल्क) कितनी भी अधिक क्यों ना हो, या सुविधाएँ कितनी भी अच्छी क्यों ना हो, भारत मंे सभी विद्यालयों को कानूनी तौर पर ‘चेरिटेबल ट्रस्ट’ के द्वारा या सेक्शन 25 कंपनी (जिसका अर्थ है अलाभकारी) द्वारा चलाया जाना आवश्यक है। यह चेरिटेबल ट्रस्ट लाभ नहीं कमा सकते व उन्हें, जितना भी उनका अधिशेष हो, उसको संस्था के उद्देश्यों में पुनः निवेश करना होगा। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता की विद्यालय कितना शुल्क ले रहे हैं या कितनी सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं। विद्यालय शहर के एक भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में हो सकता है या किसी दूरस्थ गाँव में हो सकता है। इकाई चाहे जहाँ भी स्थापित हो उसे ‘अलाभकारी’ (लाभ के लिए नहीं) होना चाहिए। इसका एक छोटा-सा अपवाद है हरियाणा। केवल हरियाणा प्रदेश में ही ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है। वहाँ के विद्यालय लाभ के लिए हो सकते हैं व कंपनी/व्यक्ति/साझेदारी द्वारा संचालित किए जा सकते हैं। कुछ ऐसे उच्च श्रेणी के विद्यालय हैं जिनमें विश्व स्तर की सुविधाएं हैं, जो गुड़गांव में स्थित हंै।

ऐसी इकाइयों को आयकर में छूट दी गई है कि यह वर्ष में अर्जित अधिशेष उसी वर्ष (या अगले वर्ष) खर्च कर सकते हैं। उन्हें किसी प्रकार के आयकर का भुगतान नहीं करना होगा। आयकर अधिकारी प्रश्न उठा रहे हैं कि एक विद्यालय जो धनी व्यक्तियों की सेवा करता है, उसे आयकर से छूट क्यों मिलनी चाहिए। वातानुकूलित कक्षाओं के साथ, एक अंतर्राष्ट्रीय बोर्ड का विद्यालय जो बाॅलीवुड़ के सितारों की सेवा करता है व 10 लाख रूपए प्रतिवर्ष का शुल्क लेता है। क्या उसे कर से छूट मिलनी चाहिए? हालांकि ऐसा कोई भी कदम गैरकानूनी होगा व कार्यान्वित होने मे बहुत लंबा समय लेगा।

क्या भारत में ऐसे कानून का होना उचित है?

दोनों। उचित क्योंकि शिक्षा, मापने के लिहाज से एक कठिन सेवा है व जब तक यह अच्छी तरह नियंत्रित नहीं की जाती, इसमें धोखाधड़ी होने की बहुत संभावना है। अभिभावक यह निर्णय लेने मे सक्षम नहीं हैं कि उनके बच्चे के लिए क्या उचित है और बहुत सारे विज्ञापन देखकर भ्रमित हो सकते हैं।

एक दलील यह है कि विद्यालय को ‘‘अलाभकारी’’ (लाभ के लिए नहीं) के रूप मे संचालित करना ठीक नहीं है क्योंकि इससे निवेश बहुत कम रहता है। कोई भी निवेशक ऐसे स्थान पर निवेश करना चाहेगा जहां उसे धनराशि व आय का प्रतिफल प्राप्त हो। यदि आप धन किसी ट्रस्ट में दान करते हैं तो कोई प्रतिफल नहीं मिलता। धनराशि हमेशा के लिए चली जाएगी। इसके परिणामस्वरूप लंबी अवधि में अच्छे विद्यालयों की कमी हो जाती है। मुझे नहीं पता कि इस समस्या का सही समाधान क्या है। परंतु एक बात हम सभी निश्चित रूप से जानते हैं कि एक अच्छे विद्यालय का निर्माण करने के लिए बहुत सारी धनराशि की आवश्यकता होती है व इस क्षेत्र में करोड़ों के निवेश को आकर्षित किए बगैर हम जनसमुदाय को उच्च श्रेणी की शिक्षा प्रदान नहीं कर सकते।

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