Tuesday 6 September 2016

बचपन का मोटापा: जीवनभर की एक समस्या?

मोटापा संयुक्त राज्य में सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या माना जाता है। यह जीवनशैली के रोगों का एक भाग है जो आय की वृद्धि व अस्वस्थ जीवनशैली के साथ आता है। प्राथमिक कारण जितनी कैलोरी ग्रहण की गई है उतनी उपयोग ना करना, जंक फूड खाना व व्यायाम न करना है।      

एक बार रूग्ण मोटापे से ग्रसित हो चुके व्यक्तियों में से कुछ ही वज़न कम कर पाते हैं व स्वस्थ रह पाते हंै। मोटापे से ग्रसित 100 व्यक्तियों में से 10 ही वज़न कम कर पाने मंे सक्षम होते हैं व उन 10 में से केवल एक ही 5 वर्ष तक मोटापे से दूर रह पाता है।

मोटापा, मृत्यु का धुम्रपान से भी अधिक बड़ा कारण बनने वाला है। तद्यपि, धूम्रपान की लत का त्याग करना सरल है, आप खाने की लत पर किस प्रकार निगरानी रखेंगे व नियंत्रित करेंगे? यह पाया गया था कि धुम्रपान, यदि 18 वर्ष की आयु से पूर्व प्रारंभ किया गया हो तो उससे मुक्ति प्राप्त करना लगभग असंभव है, इसलिए अवयस्कों को सिगरेट बेचना वर्जित है। क्या आप आइसक्रीम बेचने वालों को स्थूल बच्चों को आइसक्रीम बेचने से रोक सकते हैं? मस्तिष्क उसी प्रकार व्यवहार करता है चाहे वह चीनी की लत हो या कोकीन की।

धूम्रपान की ही तरह, यदि बच्चा स्थूल है, तो वह वयस्क होने पर भी स्थूल ही रहेगा। इसलिए शहरी परिवारों को मोटापे के विषय में जागरूकता प्राप्त करने की व यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बच्चे कम उम्र में ही इस समस्या से ग्रसित ना हो जाए।

क्या भारत व चीन जैसे विकासशील देशों को चिंतित होना चाहिए? हाँ। चीन में एक संतान की नीति है। बढ़ रहे सकल घरेलू उत्पाद यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि माताएँ उनके बच्चों का अच्छे प्रकार से पालन पोषण कर रही हैं। इसी प्रक्रिया में वे स्थूल हो जाते हैं। 12 वर्ष से कम आयु के लगभग 10 प्रतिशत बच्चे स्थूल हैं। ऐसे बच्चों के लिए एक स्वस्थ वयस्क जीवन निर्वाह करना कठिन होगा।

हमें बच्चों के वज़न की देख-भाल करनी होगी। भारत एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है जहाँ प्रति परिवार बच्चों की संख्या कम होती जा रही है व चीन के नज़दीक पहुँच रही है। परिवार की प्रयोज्य आय बढ़ती जा रही है व उसी के साथ उन्हंे उपलब्ध भोजन के विकल्प भी। मोटापे के प्रकोप के लिए सभी अग्रणी तत्व मौजूद हैं। ज़रा सी असावधानी के परिणामस्वरूप एक बड़े पैमाने पर बच्चे स्थूलकाय हो सकते हंै।

अब तक भारत की पाठ्यपुस्तकें कुपोषण व संतुलित आहार के साथ सरोकार रखती थी। किसी भी मापदंड से कुपोषित बच्चों की संख्या संभावित स्थूल बच्चों की संख्या से अधिक है। इसलिए सरकार एक ही प्रकार की पाठ्यपुस्तक संपूर्ण बोर्ड के लिए लागू नहीं कर सकती। निर्देशों का विशिष्टिकरण शिक्षक के स्तर पर किया जाना चाहिए जहाँ उन्हें विद्यार्थियों को कुपोषण व मोटापे के बीच की महीन रेखा के विषय में जागरूक करना होगा।

अभिभावक उनके बच्चों को घर में पकाया हुआ भोजन खिलाकर व उनके रोजमर्रा के जीवन में शारीरिक गतिविधियों को शामिल करके सहायता कर सकते हैं। मुझे यकीन है कि यदि अभिभावकों व बच्चों में पर्याप्त जागरूकता हो, तो हम बच्चों में मोटापे की समस्या को देश के बाहर कर सकते हैं ताकि हमारा भविष्य स्वस्थ हो।

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